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तीन लोकसभा सीटें नीतीश के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गयी हैं,

पटना: मुकेश कुमार: बिहार में तीन ऐसी लोकसभा सीटें हैं जो जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष एवं सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गयी है. नीतीश कुमार हर हाल में इन सीटों को जीतना चाहते हैं. इन सीटों में दो पर मतदान संपन्न हो गया है, जबकि एक सीट पर अभी मतदान बाकी है. इन तीनों में मधेपुरा, बांका और सीवान शामिल हैं. बांका व मधेपुरा में क्रमशः दूसरे व तीसरे चरण में चुनाव संपन्न हो गया है, जबकि तीसरी सीट सीवान में वोटिंग होना अभी बाकी है.

बांका

इन तीनों सीटों के नीतीश कुमार के लिए निजी प्रतिष्ठा से जुड़ जाने की वजहें भी हैं.
बांका सीट से दिवंगत समाजवादी नेता दिग्विजय सिंह की पत्नी पुतुल कुमारी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा है. जार्ज फर्नांडीस की अगुवाई में 1994 में जिन दो प्रमुख युवा व उभरते नेताओं तब समता पार्टी की नींव रखी थी, उसमें एक नीतीश कुमार और दूसरे दिग्विजय सिंह ही थे. हालांकि बाद में नीतीश कुमार व दिग्विजय सिंह में मतभेद उभर आये. स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि 2009 के चुनाव में स्वयं द्वारा स्थापित पार्टी ने दिग्विजय सिंह का टिकट काट दिया, जिसके बाद अपने इलाके में दादा के नाम से मशहूर दिग्विजय ने निर्दलीय चुनावी रण में उतरने का एलान कर दिया और नीतीश और लालू के उम्मीदवार को चुनाव हराकर लोकसभा पहुंच गये. इसके अगले ही साल दिग्विजय सिंह का निधन हो गया और उनकी पत्नी पुतुल कुमारी निर्दलीय लड़ी और जीतीं. बाद में वे भाजपा में चली गयीं. सीट जदयू की झोली में जाने के बाद वे एक बार फिर अपने पति की राजनीतिक विरासत को सहेजे रखने के लिए निर्दलीय मैदान में उतर गयीं. पुतुल कुमारी ने जदयू एवं राजद दोनों के उम्मीदवारों के लिए मुश्किलें पैदा कीं.

अगर यहां से पुतुल जीत जातीं हैं तो नीतीश कुमार के लिए यह एक बार फिर 2009 एवं 2010 के राजनीतिक परिदृश्य की पुनरावृत्ति जैसी होगी, जब जदयू ने अपने दिग्गज समाजवादी नेता का टिकट काट दिया था या उसके अगले ही साल उनकी पत्नी को उम्मीदवार बना कर भूल सुधार का मौका गंवा दिया था. दिग्विजय सिंह द्वारा क्षेत्र में किये गये व्यापक विकास कार्य के कारण उनकी व उनके परिवार की काफी प्रतिष्ठा है. राजद की तुलना में पुतुल का यहां से जीतना जदयू के लिए अधिक असहज करने वाली स्थिति होगी.

मधेपुरा

मधेपुरा में नीतीश कुमार को अपने ही पुराने समाजवादी साथी शरद यादव से हिसाब चुकता करना है. नीतीश कुमार द्वारा दोबारा भाजपा से गठबंधन करने के मुद्दे पर शरद यादव जदयूू में बागी हो गए. शरद यादव ने जदयू पर खुद के कब्जे का दावा किया. मामला कोर्ट कचहरी तक पहुंचा. हालांकि जदयू पर नीतीश कुमार के धड़े का ही कब्जा बरकरार रहा. ऐसे में शरद यादव ने अपनी अलग पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल बना ली. शरद यादव का राजनीतिक कद देश में जरूर बड़ा है, लेकिन बिहार में उनका सीमित जनाधार है. ऐसे में शरद लालू के लालटेन सिंबल पर मैदान में उतरे हैं.

नीतीश कुमार ने शरद यादव को यहां हराने के लिए यादव उम्मीदवार उतारा. मधेपुरा में कल ही वोटिंग संपन्न हुई. जदयू का काम यहां से पप्पू यादव ने थोड़ा आसान कर दिया. पप्पू के मैदान में उतरने से त्रिकोणीय मुकाबला हो गया और यादवों के इस गढ में शरद यादव के जीतने की संभावना थोड़ी कम हो गयी. अगर यादवों का एकतरफा वोट पप्पू या शरद को मिला तो जदयू उम्मीदवार की जीत मुश्किल हो जाएगी. नीतीश ने शरद की हार पक्की करने के लिए इस इलाके में खासा जोर लगाया.

सीवान

सीवान संसदीय सीट पर नीतीश कुमार के लिए इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से बाहुबली शाहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब चुनाव मैदान में हैं. शाहाबुद्दीन ने भागलपुर जेल से बाहर आने पर बयान दिया था कि नीतीश कुमार परिस्थितियों के मुख्यमंत्री हैं. शाहाबुद्दीन राजद के नेता हैं और उस समय नीतीश कुमार राजद के साथ गठबंधन की सरकार चला रहे थे. शाहाबुद्दीन के इस बयान पर राजद की ओर से कोई सफाई नहीं आयी. नीतीश कुमार भी इस पर तब चुप रहे, हालांकि बाद में उन्होंने अपने एक्शन से इसका जवाब दिया. फिर तेजस्वी के संपत्ति विवाद को मु्द्दा बनाते हुए नीतीश ने राजद से गठजोड़ तोड़ लिया.

नीतीश कुमार ने यहां से बाहुबली अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह को उम्मीदवार बनाया है. इस सीट से अगर हिना जीत जाएंगी तो शाहाबुद्दीन को एक नयी ताकत मिलेगी और जदयू उम्मीदवार जीतेंगी तो नीतीश परिस्थितियों के मुख्यमंत्री वाले बयान का हिसाब चुकता कर लेंगे.

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