मधेपुरा: मुकेश कुमार –
आत्म कथा—
एक खास मुलाकात सुधांशु सर से और जीवन बदल गया—–
बचपन वाले स्कूल में जिंदगी के पंद्रह वर्ष बिताए। मगर जहन में कोई शिक्षक याद नहीं रहें। उसके बाद कोटा गया वहां भी किसी शिक्षक से मन जुड़ नहीं पाया। और भटकते भटकते मधेपुरा आया बहुत ही निराश मन से मैं मधेपुरा आया था। भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में तीन साल दिए और यहां बस सुधांशु सर से दिल जुड़ा। बाकी शिक्षकों और सुधांशु सर में फ़र्क पता है क्या है? बाक़ी शिक्षकों के साथ मैंने वर्षों पढ़ाई की है। मगर सुधांशु सर मेरे दिल में है बस एक दिन में बिताए हुए चंद मिनटों की वजह से!
जिस विश्वविद्यालय में ज्यादातर शिक्षक मुझे खानापूर्ति करते हुए…बच्चों को प्रोत्साहन देने के बदले उन्हें नीचा दिखाते हुए ही मिलें…उस नक़ाब पहने चेहरों के बीच ..सुधांशु सर मुझे कीचड़ में कमल लगें। अगर उस विश्वविद्यालय में क्या अच्छा हुआ है मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूँगा सुधांशु सर से मुलाकात।
मैं कभी नहीं भूलूँगा जब मुझे इन्होंने संभाला था.। पहली बार किसी टीचर से विश्वविद्यालय में बात कर के लग रहा था कि अपना कोई बड़ा भाई है..। कोई अपना है…।
ताउम्र मैं आपका इज्ज़त करूँगा, और..ताउम्र प्यार भी…।
विश्वविद्यालय से जुड़ी गिनी चुनी अच्छी चीजों में आपका आना मेरे लिए हमेशा एक आशीर्वाद रहेगा..।