पटना:- राजनीति में एक दल से दूसरे दल में जाना नई प्रवृति नहीं है। राज्य में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है, जिन्होंने समय-समय पर दल परिवर्तन किया। लेकिन उनकी राजनीति मूल धारा के आसपास ही रही। कुछ ऐसे भी हैं, जो विपरीत धारा की राजनीति में भी कामयाबी मिली। इसमे दिवगंत सांसद भोला प्रसाद सिंह अपनी तरह के इकलौते नेता थे, जिन्हें राजनीति में धारा बदलने से भी कभी संकोच नहीं किया । बड़ी बात यह कि वे कहीं अनफिट भी नहीं हुए। जिस पार्टी से जुड़े, उसी पार्टी के विचारधारा के हो गए , बेबाक बोलना उनकी पहचान थी। इसके चलते अक्सर वे पार्टी के सीमा पर कर अपनी बात कह लेते थे।
दस साल इंतजार करने के बाद 2000 में भोला बाबू विधायक बने। सात दिनों के लिए नीतीश कुमार की जब सरकार बनी। फिर राबड़ी देवी जब मुख्यमंत्री बन गईं। भाजपा विपक्षी थी। विधानसभा में भोला बाबू ने अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर राबड़ी देवी की जमकर तारीफ की।
राजग में रहते हुए नितीश कुमार के विचार से कभी सहमत नहीं रहते थे
ऐसा नहीं है कि सिर्फ सत्ता की तारीफ करने वाले नेता की थी। सरकार की आलोचना भी समय समय पर किया करते थे, इस हद तक कि राजग में रहते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी से लड़ने में भी देरी नहीं दिखाई।
बुरे समय में भी विचलित नहीं होते थे भोला बाबू
नौ साल विधायक, नौ साल सांसद और एक साल मंत्री। सबसे बड़ा गुण उनका साहस था, जिसके दम पर बहुत खराब समय में भी विचलित नहीं होते थे। गंभीर बीमारी के बावजूद इसी साहस के दम पर वे पांच साल तक गंभीर बीमारी से संघर्ष करते रहे।